वे आज के समय के विख्यात अंग्रेजी साहित्यकार, नये अंग्रेजी छ्न्द के गुरु, निबन्धकार तथा यात्रा लेखक रहे हैं, जो अपने खरे शब्दों तथा स्पष्ट लेखन शैली से बेहद चर्चित रहे हैं। जी हां हम बात कर रहे हैं उपन्यासकार वीएस नायपॉल के बारे में।
जिनकी गिनती ऐसे लेखकों में की जाती है जो अपने शब्दों से ही नहीं बल्कि अपनी कलम के जादू से पूरे विश्व को झकझोर कर रखने की ताकत रखते हों। वे एक ऐसे लेखक हैं जो उपनिवेशवाद और इससे जुड़े अपने विभिन्न विषयों पर ही किताबें लिखने के लिए जाने जाते रहे हैं।
आइए इस लेख के माध्यम से ऐसे ही विचारों के धनी, भारतीय मूल के लेखक तथा साहित्य के लिए नोबेल पुरस्कार प्राप्त करने वाले रवीन्द्रनाथ टैगोर के बाद दूसरे भारतीय रचनाकार वीएस नायपॉल जी के बारे में खास बातें जानते हैं।
प्रारम्भिक जीवन
वी एस नायपॉल का पूरा नाम विद्याधर सूरज प्रसाद नायपॉल था। इनका जन्म 17 अगस्त 1932 को ट्रिनिडाड के चगवानस में हुआ था। ऐसा माना जाता है कि इनके दादा-दादी गोरखपुर के भूमिहार ब्राह्मण थे जिन्हें मजदूरी के लिए ट्रिनिडाड ले जाया गया था। जिस वजह से उनके पूरे परिवार को नेपाल को छोड़ना पड़ा था, अतः इनका पारिवारिक नाम नेपाल देश पर आधारित नायपॉल है। इस कारण वी इस नायपॉल का जन्म यहाँ हुआ। इनकी प्रारंभिक शिक्षा ट्रिनिडाड से और उसके बाद इंग्लैंड में हुई। उन्होंने ऑक्सफ़ोर्ड यूनिवर्सिटी से भी अपनी पढ़ाई की। वीएस नायपॉल के पिताजी श्री प्रसाद नायपॉल तथा इनके भाई-भतीजे सभी प्रसिद्ध लेखक रहे हैं तथा वे बहुत ही लंबे समय से ब्रिटेन के निवासी हैं।
नायपॉल के विचार
वीएस नायपॉल अपने विचारों के कारण से प्रसिद्ध रहे हैं। वे इस्लाम के कट्टर आलोचक भी रहे हैं। उनका मानना था कि इस्लाम ने लोगों को अपना गुलाम बनाया है तथा दूसरी संस्कृति और सभ्यता को नष्ट करने की कोशिश इस्लाम द्वारा की गई है। नायपॉल अपने स्पष्ट वक्तव्य के लिए जाने जाते हैं वे कहा करते थे कि उन लोगों का अपना अतीत नष्ट हो जाता है जो अपना धर्म परिवर्तन करते हैं। हमेशा से ही वे इस्लाम को भारत के लिए एक विध्वंसकारी धर्म बताते रहे हैं।
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नायपॉल स्पष्ट रूप से कहा करते थे कि कला और इतिहास की किताबों में लोग ऐसे लिखा करते हैं कि मुसलमान भारत आए जैसे कि वे किसी टूरिस्ट बस में आए और फिर यहां से चले गए हों। परंतु वे लोग यह क्यों नहीं लिखते की यहां की मूर्तियां और मंदिर तोड़े, यहां लूटमार की गई, स्थानीय लोगों को अपना गुलाम बनाया। उन्हें यह लिखना चाहिए कि इस्लाम न मानने वाले लोगों को किस तरह जीवित दीवार में चुनवा दिया गया और यदि उन्होंने फिर भी ना माना तो उनका शरीर धीरे-धीरे आरी से काटकर मौत के घाट उतार दिया गया। स्त्रियों पर हुए अत्याचारों की गिनती आखिर क्यों कोई क़िताबों में नहीं करता।
वीएस नायपॉल मानते थे कि ईसाइयों ने भारत को उतना नुकसान नहीं पहुंचाया है जितना इस्लाम ने पहुंचाया है। भारत के लिए उनका प्रेम उनकी लिखी कृतियों में साफ झलकता है। भारत पर उनकी किताबें भले ही 27 सालों में लिखी गई हों परन्तु 'इन एरिया ऑफ डार्कनेस' तथा 'ए वुडेड सिविलाइजेशन' जैसी किताबें उनके तथा भारत के बीच के अथाह प्रेम को दर्शाता है जो उन्होंने भारत के इतिहास संस्कृति और सभ्यता जैसे विषय पर लिखी हैं।
उन्होंने स्वयं की एक पुस्तक 'मिलियन मयूटिनीज़' के छपने के 2 वर्षों बाद बाबरी मस्जिद के विध्वंस का बचाव किया जिसमें उनके द्वारा इसे एक ऐतिहासिक संतुलन करार दिया गया।
नायपॉल का व्यक्तिगत जीवन
Sir V. S. Naipaul ने 1972 में मार्गरेट मरे गुडिंग से विवाह किया। 1995 में जब वे गुडिंग के साथ इंडोनेशिया में यात्रा कर रहे थे उस वक्त गुडिंग पेट्रीसिया कैंसर से ग्रस्त थी। इसके एक साल बाद यानी कि अगले ही साल उनकी मृत्यु हो गयी। इसके बाद नायपॉल ने एक पाकिस्तानी पत्रकार नादिरा अल्वी से विवाह कर लिया।
वी एस नायपॉल की प्रमुख रचनाएँ
नायपॉल जी ने कई सारे उपन्यास तथा निबंध लिखे हैं जो उनके द्वारा साहित्य में किये गए योगदान को बयां करते हैं।उनके कुछ उपन्यास हैं-:
- The Mystic Masseur (1957)
- The Suffrage of Elvira (1958)
- Miguel Street (1959)
- A House For Mr. Biswas (1961)
- Mr. Stone and the Knights Companions (1963)
- A Flag One the Island (1967)
- The Mimic Men (1967)
- In A Free State (1971)
- Guerillas (1975)
- A Bend In The River (1979)
- Finding The Centre (1984)
- A Way In The World (1994)
- Half A life (2001)
- Magic Seeds (2004) आदि।
वी एस नायपॉल द्वारा प्राप्त पुरस्कार
नायपॉल जी को कई पुरस्कारों से सम्मानित किया जा चुका है इसमें से सबसे अहम हैं- 1971 में बुकर पुरस्कार तथा वर्ष 2001 में साहित्य के लिए नोबेल पुरस्कार।
अन्य पुरस्कार-:
- ज़ोन लीलवेलीन रीज पुरस्कार (1958)
- द सोमरसेट मोगम अवॉर्ड (1980)
- द होवथो रडन पुरस्कार (1964)
- द डब्लू एच स्मिथ साहित्यिक अवॉर्ड (1968)
- द डेविड कोहेन पुरस्कार (1993)【ब्रिटिश साहित्य में जीवनपर्यन्त कार्य करने के लिए】
- {2008 में The Times के द्वारा इन्हें 50 महान ब्रिटिश साहित्यकारों की सूची में 7वाँ स्थान दिया गया।}
मृत्यु
वी एस नायपॉल का निधन 11 अगस्त 2018 की सुबह उनके अपने लंदन में स्थित घर पर हुआ। वे 85 वर्ष के थे।
वी एस नायपॉल के बारे में खास बातें
नायपॉल ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी में बी. लिट के इम्तिहान में पहली बार फेल हो गए थे।
2001 में उन्हें साहित्य का नोबेल मिला और इसी वर्ष बनाई गई फिल्म 'I The Mistic Meser' उनकी ही एक किताब पर आधारित है जिसे उन्होंने 1957 में लिखा था,।
नायपॉल ने 30 से भी अधिक किताबें लिखी हैं। यह कार्य उन्होंने 61 साल के अपने करियर में किया किया है।
नायपॉल के विचार अनेक धर्मनिरपेक्ष विचारकों तथा लेखकों को आज भी पसंद नहीं आते हैं तथा वे उनकी आलोचना करते रहते हैं।